यूपी में शिक्षा पर संकट: 5000 स्कूल बंद करने का प्रस्ताव और 'अनपढ़ आबादी' की आशंका
नोएडा, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा 5000 सरकारी स्कूलों को बंद करने का प्रस्ताव शिक्षा के भविष्य पर एक गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है। सरकार इसे संसाधनों के अनुकूलन और गुणवत्ता में सुधार बता रही है, लेकिन आलोचक अब यह आरोप लगा रहे हैं कि इस कदम के पीछे एक गहरी मंशा छिपी है: गरीबों के बच्चों को शिक्षा से वंचित रखना ताकि वे भविष्य में रोजगार, सरकारी नीतियों या अन्य किसी भी मुद्दे पर सवाल न उठा सकें और केवल मजदूर बनकर अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर हों।
इस प्रस्ताव से सीधे तौर पर लगभग 5 लाख बच्चे प्रभावित होंगे, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण और वंचित समुदायों से आते हैं। यदि यह योजना लागू होती है, तो आशंका है कि प्रति वर्ष लगभग 2.5 लाख बच्चे औपचारिक शिक्षा से वंचित हो जाएंगे, जिसका अर्थ है कि योगी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में लगभग 12.5 लाख बच्चे अनपढ़ या शिक्षा की मुख्यधारा से बाहर हो सकते हैं। यह आंकड़ा राज्य के मानव संसाधन विकास और सामाजिक प्रगति के लिए एक बड़ा धक्का साबित होगा।
आलोचकों का तर्क है कि यह सिर्फ शिक्षा में कमी नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है। उनका कहना है कि जहाँ एक तरफ सरकार धर्म और मंदिर निर्माण पर बड़े पैमाने पर सार्वजनिक धन खर्च कर रही है, वहीं शिक्षा जैसे मौलिक अधिकार के लिए स्कूलों को बंद करना सरकार की प्राथमिकताओं पर गंभीर संदेह पैदा करता है। यह विरोधाभास इस आशंका को जन्म देता है कि क्या सरकार जानबूझकर एक ऐसी आबादी तैयार कर रही है जो शिक्षित न होने के कारण अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न हो, सरकारी नीतियों पर सवाल न उठा सके और केवल श्रम बाजार का हिस्सा बनकर रह जाए।
शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह स्थिति सामाजिक और आर्थिक असमानता को अत्यधिक बढ़ाएगी। दूरदराज के इलाकों में बच्चों, खासकर लड़कियों के लिए, दूसरे स्कूलों में जाना लगभग असंभव होगा, जिससे बाल विवाह और बाल श्रम जैसी समस्याएं बढ़ेंगी। वे जोर देते हैं कि सरकार को स्कूलों को बंद करने के बजाय उनमें निवेश करना चाहिए, शिक्षकों की कमी पूरी करनी चाहिए और बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
फिलहाल, इस प्रस्ताव को लेकर जनता और विभिन्न संगठनों में गहरी नाराजगी है। यह देखना बाकी है कि सरकार इन चिंताओं पर क्या प्रतिक्रिया देती है, लेकिन यह मुद्दा उत्तर प्रदेश के लाखों बच्चों के भविष्य और राज्य की सामाजिक-आर्थिक दिशा पर एक गहरा प्रश्नचिह्न लगा रहा है।
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