उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा 5000 स्कूलों को बंद करने का हालिया प्रस्ताव राज्य में शिक्षा के भविष्य को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर रहा है। यह निर्णय, जिसका उद्देश्य संभवतः संसाधनों का अनुकूलन करना और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना बताया जा रहा है, जमीनी स्तर पर लाखों बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, खासकर ग्रामीण और वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों पर। यह एक ऐसा कदम है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे और यह राज्य के शैक्षिक परिदृश्य को स्थायी रूप से बदल सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में, स्कूल अक्सर बच्चों के लिए ज्ञान और अवसर का एकमात्र द्वार होते हैं। छोटे बच्चों के लिए, विशेष रूप से प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ने वाले, घर के पास स्कूल का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। गांव में भी स्कूल जाने में कतराने वाले छोटे बच्चे, जो कम दूरी तय करने में भी कठिनाई महसूस करते हैं, उनके लिए दूर के स्कूलों तक पहुंचना लगभग असंभव हो जाएगा। सुरक्षित परिवहन की अनुपलब्धता, खासकर लड़कियों के लिए, एक और बड़ी बाधा साबित होगी। अभिभावक अपने बच्चों को लंबी दूरी तय करके स्कूल भेजने में हिचकिचाएंगे, जिससे बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि होगी।
यदि हम एक औसत अनुमान लगाएं कि प्रत्येक बंद होने वाले स्कूल में लगभग 100 बच्चे पढ़ते हैं, तो 5000 स्कूलों के बंद होने से 5 लाख बच्चे सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। यदि हम यह मान लें कि इनमें से कम से कम 50% बच्चे (यानी 50 बच्चे प्रति स्कूल) दूरी बढ़ने के कारण शिक्षा से वंचित हो जाएंगे, तो इसका मतलब है कि सालाना लगभग 2.5 लाख बच्चे औपचारिक शिक्षा से कट जाएंगे। यह आंकड़ा एक भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है, क्योंकि यह बच्चे न केवल अपनी प्राथमिक शिक्षा से वंचित होंगे, बल्कि उनके भविष्य के अवसरों और संभावनाओं पर भी इसका गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि शिक्षा केवल अक्षरों और अंकों को सीखने तक सीमित नहीं है; यह सामाजिक विकास, कौशल निर्माण और एक नागरिक के रूप में सशक्तिकरण का आधार है। जब बच्चे स्कूल से दूर होते हैं, तो वे न केवल अकादमिक ज्ञान खोते हैं, बल्कि वे सामाजिक मेलजोल, खेल-कूद और समग्र व्यक्तित्व विकास के अवसरों से भी वंचित हो जाते हैं। यह स्थिति बाल विवाह, बाल श्रम और अन्य सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा दे सकती है, जिससे समाज में असमानता और गरीबी का दुष्चक्र और मजबूत होगा।
सरकार का तर्क हो सकता है कि यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करेगा, शिक्षकों का बेहतर वितरण सुनिश्चित करेगा और बुनियादी ढांचे को मजबूत करेगा। हालांकि, यह तर्क उन वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है जिनका सामना ग्रामीण भारत के बच्चे करते हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का वादा तब तक अधूरा है जब तक बच्चों को स्कूल तक पहुंचने का साधन न हो। बेहतर गुणवत्ता वाले दूर के स्कूल उन बच्चों के लिए कोई मायने नहीं रखते जो उन तक पहुंच ही नहीं सकते।
इसके बजाय, सरकार को मौजूदा स्कूलों को मजबूत करने, उनमें आवश्यक बुनियादी ढांचा प्रदान करने, प्रशिक्षित शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने और सुरक्षित परिवहन विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना और अभिभावकों को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करना भी महत्वपूर्ण है। शिक्षा को पहुंच योग्य बनाना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, न कि उसे दुर्गम बनाना।
निष्कर्ष में, उत्तर प्रदेश सरकार का 5000 स्कूलों को बंद करने का निर्णय एक शिक्षा संकट को जन्म दे सकता है। यह कदम लाखों बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर सकता है, जिससे राज्य के मानवीय और सामाजिक पूंजी पर गंभीर और स्थायी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह समय है कि सरकार अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे और समावेशी और सुलभ शिक्षा के मार्ग का अनुसरण करे, जो उत्तर प्रदेश के प्रत्येक बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को सुनिश्चित करे। शिक्षा एक अधिकार है, और इसे सुरक्षित रखना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है।
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