भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने पर इस समय अभूतपूर्व संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हाल के चुनावों में मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण को लेकर उठ रहे सवालों ने देश की संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर गहरा आघात किया है। गंभीर आरोप लग रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इशारे पर चुनाव आयोग (EC) द्वारा सुनियोजित तरीके से मुस्लिम, यादव, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के लाखों मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से काटे जा रहे हैं। यह सिर्फ तकनीकी गड़बड़ी नहीं, बल्कि देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और आम जनता के मताधिकार को कुचलने की एक गहरी साजिश का हिस्सा प्रतीत हो रहा है।
चुनाव आयोग की भूमिका पर प्रश्नचिह्न:
भारत का चुनाव आयोग, जो अपने निष्पक्ष और स्वायत्त कामकाज के लिए जाना जाता था, आज कटघरे में खड़ा है। विपक्षी दलों और नागरिक समाज संगठनों का आरोप है कि आयोग अब एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था न रहकर सत्ताधारी दल के "गुलाम" के रूप में कार्य कर रहा है। चुनाव आयोग पर दबाव में काम करने और भाजपा के राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए चुनावी प्रक्रिया में हेरफेर करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। वोटर लिस्ट से बड़े पैमाने पर नामों का गायब होना, खासकर उन क्षेत्रों में जहां अल्पसंख्यक और हाशिए पर पड़े समुदाय बहुसंख्यक हैं, इन आरोपों को और बल देता है। यह घटनाक्रम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को दी गई शक्तियों और जिम्मेदारियों का घोर उल्लंघन है। यदि चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता खो देता है, तो देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा, और यह सीधे तौर पर लोकतंत्र की हत्या होगी।
भाजपा पर लोकतंत्र विरोधी होने के आरोप:
इन आरोपों के केंद्र में भारतीय जनता पार्टी है, जिस पर चुनावों में धांधली करने और अपनी राजनीतिक शक्ति को मजबूत करने के लिए अलोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया जा रहा है। विपक्ष का कहना है कि वोटर लिस्ट से विशिष्ट समुदायों के नाम हटाकर भाजपा एक ऐसे मतदाता आधार का निर्माण करना चाहती है, जो उसके पक्ष में झुका हो। यह कदम न केवल संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सत्ताधारी दल अपने विरोधियों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही बाहर करना चाहता है। यह अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों के मताधिकार को छीनने का सीधा प्रयास है, जो उन्हें संवैधानिक रूप से प्राप्त है। राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे हथकंडे अपनाना देश में बढ़ते सत्तावाद और लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण का स्पष्ट संकेत है।
आम जनता के अधिकारों का हनन और बढ़ता आक्रोश:
इन कथित गड़बड़ियों से देश भर की आम जनता में गहरा आक्रोश और निराशा है। खासकर वे लोग जिनके नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं, वे खुद को ठगा हुआ और शक्तिहीन महसूस कर रहे हैं। मतदाता सूची से नाम काटे जाने का यह निर्णय न केवल उनके मताधिकार का हनन है, बल्कि यह उनकी नागरिकता पर भी सवाल उठाता है। यह आम लोगों के बीच यह डर पैदा करता है कि उनके बुनियादी अधिकारों को आसानी से छीना जा सकता है। यह स्थिति सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ सकती है और बड़े पैमाने पर अशांति को जन्म दे सकती है। लोकतांत्रिक देश में प्रत्येक नागरिक का यह अधिकार है कि वह बिना किसी बाधा के अपने मताधिकार का प्रयोग करे। जब इस अधिकार पर हमला होता है, तो यह संविधान पर सीधा हमला होता है, जिसकी रक्षा करना देश के हर संस्थान का कर्तव्य है।
संविधान और लोकतंत्र का भविष्य खतरे में:
यदि चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक निकाय राजनीतिक दबाव में काम करना शुरू कर दें और सत्तारूढ़ दल चुनावी प्रक्रिया में हेरफेर करने लगे, तो भारतीय लोकतंत्र का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। संविधान, जो देश के हर नागरिक को समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करता है, खतरे में पड़ जाएगा। "ब्राह्मण आतंकवाद" जैसे विवादास्पद बयानों के बीच, जैसा कि आज़ाद दस्तक न्यूज़ के मालिक अर्जुन यादव ने दिया है, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि संवैधानिक संस्थाएं अपनी निष्पक्षता बनाए रखें और किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से दूर रहें।
देश के इस नाज़ुक मोड़ पर, यह आवश्यक है कि सभी जिम्मेदार नागरिक और राजनीतिक दल एकजुट होकर चुनाव आयोग से पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करें। इन आरोपों की निष्पक्ष और गहन जांच होनी चाहिए, और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है, तो भारत का लोकतंत्र केवल नाम का रह जाएगा, और आम जनता अपने अधिकारों से वंचित हो जाएगी। यह समय है कि देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सब मिलकर आ
वाज उठाएं।
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