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राष्ट्रीय सुरक्षा से जांच: क्या मोदी सरकार मीडिया पर नजर रखती है? युद्धकाल में शत्रुओं को मंच देना देश के लिए घातक!



नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान जैसे दशकों पुराने, संकेत दिए गए देशों के लिए, युद्ध या सैन्य तनाव के दौरान मीडिया की भूमिका हमेशा एक जटिल और विवादास्पद सामग्री रही है। हाल ही में इस बात को लेकर गहरी चिंताएं उभरकर सामने आ रही हैं कि भारत के मीडिया चैनलों पर सामान्य लोगों के साक्षात्कार में हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के बीच के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संतुलन को जोड़ता है, जिसे मोदी सरकार द्वारा बहाल किया जाना है और राष्ट्रव्यापी स्वतंत्रता से स्मारक लेने की आवश्यकता है।

यह दावा महत्वपूर्ण है कि आधुनिक युद्ध में केवल सीमा पर लड़ाई वाला शारीरिक संघर्ष शामिल नहीं है, बल्कि यह सूचना के संदेश पर भी आधारित है। शत्रु देशों के खुफिया तंत्र और रणनीतिकार हर उपलब्ध स्रोत से जानकारी जुटाने का प्रयास करते हैं, और इसमें "खुले स्रोत" (ओपन सोर्स इंटेलिजेंस - OSINT) जैसे टेलीविजन प्रसारण भी शामिल हैं। ऐसे में, यदि भारतीय मीडिया चैनल विदेशी राजनेता, विशेषज्ञ या पूर्व अधिकारी मंच प्रदान करते हैं, तो इसके कई गंभीर निहितार्थ हो सकते हैं।

मीडिया की गैर-जिम्मेदाराना पत्रकारिता: आंतरिक सुरक्षा से निरीक्षण

सबसे बड़ा इंटेलिजेंस चिंता ज्ञान के मित्र (अनपेक्षित इंटेलिजेंस रिसाव) की है। भले ही साक्षात्कार का उद्देश्य केवल अपरिपक्व राय हो या किसी मुद्दे पर विचार प्रस्तुत करना हो, शत्रु इसे कई तरह से अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मीडिया गैर-जिम्मेदाराना पत्रकारिता का स्पष्ट उदाहरण है, जो आंतरिक सुरक्षा को सीधे प्रभावित कर सकता है:

 *जनता का विभाजन और विभाजन: तटस्थ स्थिरता या आम नागरिक भारतीय समाज के अंदर के दृष्टिकोण, राजनीतिक समानताएं, सामाजिक विभाजन या यहां तक ​​कि किसी क्षेत्र विशेष में व्याप्त उदासीनता पर टिप्पणी कर सकते हैं। यह जानकारी शत्रुओं को यह सुझाव देने में मदद कर सकती है कि भारत के हिस्सों में कौन सा हिस्सा बेकार है, कहां-कहां फैलाया जा सकता है, या किन-किन टुकड़ों को बनाया जा सकता है। इस देश के अंदर ही आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा होता है।

 *सैन्य और संकेत चिह्न: सीधे तौर पर सैन्य जानकारी में दिए गए विवरण के अनुसार, भारतीय सेना के क्षेत्र, स्थानीय आबादी के समर्थन या विरोध, आपूर्ति श्रृंखला की स्थिति, या किसी विशेष क्षेत्र में तनाव के संकेत के लिए भी शत्रु महत्वपूर्ण हो सकते हैं। यह जानकारी सीधे तौर पर शत्रुओं के हाथों में विक्रेता देश की सामरिक स्थिति को कमजोर कर सकती है।

 * सरकार की प्रतिक्रिया का सारांश: भारतीय सरकार के सदस्यों, निर्णयों या सहयोगियों के साक्षात्कार में (या आपके उत्तर में भारतीय एंकर या विशेषज्ञ कुछ कहते हैं) शत्रुओं को यह संकेत में मदद मिल सकती है कि भारत किस तरह से सोच रहा है या उनकी अगली चाल क्या हो सकती है। यह शत्रु को हमारी कंपनी का संचार करने का अवसर देता है।

शत्रुओं का प्रचार मंच और भारतीय अनुशासन पर कठोर प्रहार

भारतीय मीडिया पर संवाद समूहों को स्थान देना उन्हें अपने देश का नैरेटिव, अपनी चंचल कहानियां या भारत विरोधी प्रचार प्रसार का एक सीधा और प्रभावशाली मंच प्रदान करता है। वे भारत के अंदर ही भ्रम और संदेह पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं, भारतीय आबादी को अनावृत कर सकते हैं, या देश के अंदर ही असंतोष को बढ़ावा दे सकते हैं। यह हमारी एकता और अखंडता पर सीधा हमला है।

यह भारतीय सैनिकों और नागरिकों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। जब किसी देश में युद्ध होता है और सैनिकों के बीच लड़ाई होती है, तो ऐसे में अपने ही देश के दुश्मनों पर वार करते हुए हतोत्साहित होने की बात कही जा सकती है। यह जनता में भ्रम या प्रारूप पैदा हो सकता है और देश के प्रति विश्वास को डगमगा सकता है।

मोदी सरकार को कच्चे कदम उठाने की महंगाई: अब और नहीं!

भारतीय संविधान स्वतंत्रता की स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है, खासकर जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा की हो। दुनिया के अधिकांश देशों में, संकट या समय युद्ध भाषण और मीडिया पर प्रतिबंध वाले कानून मौजूद हैं, विशेष रूप से उस जानकारी पर जो सीधे दुश्मनों की मदद कर सकता है या हिंसा भड़का सकता है।

जबकि न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) जैसे परमाणु ऊर्जा निगम में मौजूद हैं, युद्धकाल जैसे परमाणु हथियार और उच्च जिम्मेदारी का परिचय देना चाहिए, न कि राष्ट्रहित से समझौता करना चाहिए। अब समय आ गया है कि मोदी सरकार इस मामले में मजबूत और मजबूत कदम उठा रही है। केवल जारी करने का प्रमाण पत्र पर्याप्त नहीं है; ऐसी मीडिया इकाइयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए जो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालती हैं। यह सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है कि दुश्मनों को हमारे ही चैनलों से कोई भी फ़ायदा न मिले।

निष्कर्षतः, युद्ध के मैदान में मीडिया की भूमिका केवल सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का एक सिद्धांत है। युवाओं के लिए भारतीय चैनलों के साक्षात्कार से उत्पन्न होने वाले कलाकारों को नामांकित करना आवश्यक है। मोदी सरकार ने इस संवेदनशील विषय पर एक बार फिर विचार करते हुए कहा कि ऐसे सख्त कदम उठाने चाहिए, जिससे राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि रहे और अपनी मीडिया जिम्मेदारी को समझे।


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