- योगी सरकार ने बृजभूषण सिंह के मुकदमे वापस लेने की अर्जी दी।
- न्यायाधीश राकेश ठाकुर ने अर्जी को मंजूरी दी।
- पहले भी भाजपा नेताओं के केस वापस हो चुके हैं।
- पिछड़े वर्ग के नेता केशव प्रसाद मौर्य के मुकदमे अब भी लंबित।
- राजनीतिक पक्षपात और जातीय समीकरणों पर सवाल।
मामले की पूरी जानकारी
योगी आदित्यनाथ सरकार ने भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे वापस लेने की अर्जी लगाई थी, जिसे न्यायाधीश राकेश ठाकुर ने मंजूर कर लिया। यह मामला राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है।
पहले भी मुकदमे वापस लिए गए
यह पहली बार नहीं है जब योगी सरकार ने किसी भाजपा नेता के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लिए हों। इससे पहले स्वामी चिन्मयानंद, जिन पर बलात्कार का गंभीर आरोप था, उनका भी केस वापस लिया गया था।
इतना ही नहीं, खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे, जिनमें से 50 से अधिक मामले उनकी सरकार ने सत्ता में आते ही वापस ले लिए।
पक्षपात के आरोप क्यों?
इस फैसले के बाद यह सवाल उठने लगा है कि योगी सरकार अपने नेताओं के मुकदमे तो वापस ले रही है, लेकिन अपने ही दल के पिछड़े वर्ग के नेता केशव प्रसाद मौर्य के केस वापस नहीं कर रही। इससे राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म हो गई है कि क्या भाजपा के भीतर भी जातिगत भेदभाव किया जा रहा है?
क्या सिर्फ ठाकुर और ऊंची जातियों के नेताओं को फायदा मिल रहा है?
विपक्ष का आरोप है कि भाजपा सरकार जातिगत राजनीति कर रही है और अपने ही पिछड़े वर्ग के नेताओं के प्रति भेदभाव कर रही है।
क्या यह न्यायपालिका और सरकार की मिलीभगत है?
यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या न्यायपालिका और सरकार के बीच कोई अघोषित समझौता है, जिससे सत्ताधारी दल के नेताओं को विशेष छूट मिल रही है?
महाभारत से तुलना:
इस पूरे मामले को लेकर सोशल मीडिया पर मज़ाक भी उड़ाया जा रहा है। कुछ लोगों ने इसे महाभारत के बाद का सबसे बड़ा संयोग बताते हुए लिखा कि
"ठाकुर योगी आदित्यनाथ ने अर्जी लगाई, ठाकुर जज ने मंजूर की और ठाकुर नेता को राहत मिल गई।"
विपक्ष का हमला
विपक्षी दलों ने इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है:
- समाजवादी पार्टी – भाजपा सरकार सिर्फ ऊंची जातियों को संरक्षण दे रही है, पिछड़े और दलित समाज के नेताओं के साथ भेदभाव हो रहा है।
- कांग्रेस – यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करता है। क्या न्याय केवल सत्ता के दबाव में काम करेगा?
- बसपा – भाजपा सरकार का असली चेहरा सामने आ गया है।
निष्कर्ष
इस फैसले ने राजनीति और न्यायपालिका की निष्पक्षता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। सवाल यह है कि क्या सरकार और अदालतें सत्ताधारी दल के नेताओं के लिए अलग और विपक्ष या कमजोर वर्ग के लिए अलग मानदंड अपनाती हैं?
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या केशव प्रसाद मौर्य के मुकदमे भी वापस होते हैं या यह भेदभाव जारी रहेगा।
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