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उत्तर प्रदेश में बढ़ती सामाजिक दरार: यामिनी-देविका की धमकियां, यादव बंधुओं का अपमान और 'ब्राह्मण आतंकवाद' पर तीखी बहस

 

 

 दलितों और पिछड़ों पर बढ़ते अत्याचारों के बीच, क्या 'धर्म के ठेकेदारों' की अवधारणा समाज को बांट रही है? अर्जुन यादव का आरोप और एक अदृश्य संघर्ष की आहट।



नोएडा, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश की सरजमीं इन दिनों एक ऐसे सामाजिक उथल-पुथल की गवाह बन रही है, जिसने सदियों पुरानी जातिगत खाई को फिर से गहरा कर दिया है। हालिया घटनाएं, जिनमें युवा सामाजिक कार्यकर्ता यामिनी शाहू और पत्रकार देविका पटेल को कथित धमकियां देना और उससे भी चौंकाने वाली, मुकुटमणि यादव व संत सिंह यादव का सरेआम अपमान करना शामिल है, ने पूरे राज्य में आक्रोश और बहस की एक नई लहर छेड़ दी है। इन घटनाओं ने एक बार फिर 'ब्राह्मण आतंकवाद' या 'स्वर्ण आतंकवाद' जैसे गंभीर आरोपों को केंद्र में ला दिया है, और सवाल उठ रहे हैं कि क्या समाज का एक तबका अभी भी खुद को 'धर्म का ठेकेदार' मानकर अन्य समुदायों पर अपनी श्रेष्ठता थोपने का प्रयास कर रहा है।

यामिनी और देविका: सन्नाटे में गूंजती धमकियां

मामले की शुरुआत कुछ हफ़्ते पहले हुई, जब दलित समुदाय के अधिकारों के लिए मुखर रूप से आवाज उठाने वाली यामिनी शाहू ने सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती साझा की। "मुझे लगातार गुमनाम धमकियां मिल रही हैं," उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा। "वे चाहते हैं कि मैं दलितों के मुद्दों पर बोलना बंद कर दूं।" उनकी यह चिंता जल्द ही युवा पत्रकार देविका पटेल की आपबीती से जुड़ गई। देविका ने हाल ही में अपने लेखों में सवर्णों द्वारा दलितों के साथ भूमि विवादों और अन्य अत्याचारों को उजागर किया था। सूत्रों के अनुसार, देविका को एक अनाम नंबर से कॉल आया, जिसमें उन्हें अपनी रिपोर्टिंग बंद करने की धमकी दी गई। एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हमें दोनों मामलों में शिकायतें मिली हैं और जांच जारी है। धमकियों का स्वरूप गंभीर है और हम सभी पहलुओं पर गौर कर रहे हैं।" क्या ये धमकियां केवल डराने-धमकाने तक सीमित हैं, या इसके पीछे कोई बड़ा, संगठित प्रयास है? यह सवाल अब भी रहस्य बना हुआ है।

यादव बंधुओं का जघन्य अपमान: क्या यह एक संदेश है?

अभी यामिनी और देविका के मामलों की जांच चल ही रही थी कि उत्तर प्रदेश के एक ग्रामीण इलाके से एक और दिल दहला देने वाली खबर सामने आई। स्थानीय किसान नेता मुकुटमणि यादव और उनके छोटे भाई संत सिंह यादव को सरेआम अपमानित करने का आरोप लगा है। प्रत्यक्षदर्शियों और वायरल हुए कथित वीडियो (जिसकी प्रामाणिकता की पुलिस जांच कर रही है) के अनुसार, दोनों भाइयों के सिर मुंडवा दिए गए और इससे भी ज्यादा वीभत्स बात यह है कि उनकी भाभी पर कथित तौर पर मूत्र छिड़का गया। इस घटना के पीछे कुछ 'उच्च जाति' के लोगों का हाथ बताया जा रहा है, जिन्होंने कथित तौर पर यादव बंधुओं पर 'धर्म का अपमान' करने का आरोप लगाया।

एक स्थानीय ग्रामीण ने बताया, "यह सिर्फ एक अपमान नहीं था, यह एक संदेश था। एक संदेश कि यदि आप हमारी बात नहीं मानेंगे, तो आपको ऐसी ही सजा मिलेगी।" इस घटना ने दलित और ओबीसी समुदायों के बीच गहरा रोष पैदा कर दिया है, जो इसे अपनी पहचान और गरिमा पर सीधा हमला मान रहे हैं।

'ब्राह्मण आतंकवाद' बनाम सामाजिक न्याय: कौन है 'धर्म का ठेकेदार'?

इन घटनाओं ने 'ब्राह्मण आतंकवाद' और 'स्वर्ण आतंकवाद' जैसे संवेदनशील शब्दों पर एक तीखी बहस छेड़ दी है। आजाद दस्तक न्यूज़ के मालिक अर्जुन यादव ने इन घटनाओं को 'ब्राह्मण आतंकवाद' की संज्ञा दी है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, "आज दलितों और पिछड़ों पर जो अत्याचार हो रहे हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि एक समुदाय खुद को इतना ऊंचा समझने लगा है कि वह एससी, एसटी और ओबीसी के तमाम लोगों को अपने पैर की जूती समझता है।" यादव का कहना है कि यह केवल आपराधिक कृत्य नहीं हैं, बल्कि एक गहरी मानसिकता का परिणाम हैं, जहां कुछ लोग स्वयं को 'धर्म के ठेकेदार' मान बैठे हैं।

एक दलित अधिकार कार्यकर्ता ने अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए कहा, "क्या धर्म के ठेकेदार केवल ब्राह्मण ही होंगे? यह अधिकार उन्हें किसने दिया है? हमारा संविधान सभी को समान अधिकार देता है। फिर भी, हमें आज भी नीचा दिखाया जा रहा है, अपमानित किया जा रहा है।" इस घटना के बाद से, विभिन्न दलित और पिछड़ा वर्ग संगठनों ने विरोध प्रदर्शनों की चेतावनी दी है, और सरकार से इन मामलों में सख्त कार्रवाई की मांग की है।

पुलिस जांच और सामाजिक तनाव:

पुलिस ने मुकुटमणि यादव और संत सिंह यादव मामले में कुछ गिरफ्तारियां की हैं, और आगे की जांच जारी है। हालांकि, इन घटनाओं ने समाज में एक गहरा अविश्वास और तनाव पैदा कर दिया है। जहां एक ओर दलित और पिछड़ा वर्ग इन घटनाओं को सवर्णों की बढ़ती दादागिरी के रूप में देख रहा है, वहीं सवर्ण समुदाय के कुछ लोग इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे राजनीतिक रंग देने का आरोप लगा रहे हैं।

यह स्थिति उत्तर प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करती है। यदि इन कथित अत्याचारों के मूल कारणों को संबोधित नहीं किया गया, और सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह दरार और गहरी हो सकती है। सवाल यह है कि क्या न्याय मिलेगा, और क्या भारत का समाज इन सदियों पुरानी दीवारों को तोड़कर समानता और गरिमा के एक नए युग की ओर बढ़ पाएगा, या फिर 'धर्म के ठेकेदारों' की यह अवधारणा सामाजिक विखंडन को जन्म देगी? इन घटनाओं का भविष्य का प्रभाव क्या होगा, यह अभी भी सस्पेंस बना हुआ है।


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