लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। हाल ही में पुलिस प्रशासन पर यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह निष्पक्षता से काम करने के बजाय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राजनीतिक रणनीति से प्रेरित होकर फैसले ले रही है।
क्या कहता है संविधान?
भारतीय संविधान के अनुसार, पुलिस प्रशासन को निष्पक्ष रहकर कानून व्यवस्था बनाए रखने का दायित्व सौंपा गया है। पुलिस का कार्य केवल अपराधों की रोकथाम और न्यायिक प्रक्रिया को सुचारु रूप से लागू करना है, न कि किसी राजनीतिक दल के हितों को साधना।
भाजपा सरकार में पुलिस की भूमिका पर सवाल
- विपक्ष के नेताओं पर कार्रवाई: विपक्षी दलों के नेताओं पर त्वरित कार्रवाई, जबकि सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के खिलाफ मामलों में ढिलाई के आरोप।
- जन आंदोलनों पर सख्ती: नागरिक आंदोलनों, विरोध प्रदर्शनों और धरना-प्रदर्शनों पर सख्त रुख अपनाया जाता है, खासकर तब जब वे भाजपा के खिलाफ होते हैं।
- धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण: कुछ मामलों में पुलिस की कार्रवाई को धर्म और जाति के आधार पर पक्षपातपूर्ण माना गया है।
न्यायपालिका और मानवाधिकार संगठनों की चिंता
मानवाधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पुलिस प्रशासन संविधान और न्यायिक निर्देशों के बजाय किसी विशेष राजनीतिक दल के इशारे पर काम करता है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकता है।
सरकार का पक्ष
सरकार और पुलिस प्रशासन का कहना है कि उनके फैसले कानून और सुरक्षा की दृष्टि से लिए जाते हैं और उन पर लगाए जा रहे आरोप निराधार हैं।
क्या होना चाहिए?
- पुलिस को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहकर काम करना चाहिए।
- निष्पक्ष और पारदर्शी जांच सुनिश्चित होनी चाहिए।
- पुलिस सुधारों को लागू किया जाना चाहिए ताकि उसकी जवाबदेही सुनिश्चित हो।
उत्तर प्रदेश पुलिस को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, वे केवल राजनीतिक दलों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों और लोकतंत्र की सुदृढ़ता से भी जुड़े हुए हैं। ऐसे में निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा आवश्यक है।
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