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युद्ध की स्थिति में बजरंग दल, आरएसएस और करणी सेना को पहले अवसर देने की मांग

 



नई दिल्ली, 30 अप्रैल 2025:
सोशल मीडिया पर इन दिनों एक अनापेक्षित और उदासीन टिप्पणी का विषय बना हुआ है, जिसमें कहा गया है कि अगर देश में युद्ध होता है, तो बजरंग दल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और करणी सेना के समर्थकों को सबसे पहले भेजा जाए। इस टिप्पणी के पीछे की सोच यह है कि ये संगठन अक्सर राष्ट्रभक्ति, शौर्य और पराक्रम की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन जब असली परीक्षा का समय आता है, तो उनके योगदान पर सवाल उठाए जाते हैं।

इस कथन का मुख्य उद्देश्य यह है कि यदि यह संगठन स्वयं को देश का सबसे बड़ा रक्षक और संस्कृति का समर्थक मानता है, तो उन्हें रूढ़िवादी विचारधारा से भी सबसे आगे रहना चाहिए। साथ ही, यह भी कहा गया कि अगर मौका नहीं दिया गया तो ये फिर से नए या जातिगत समुदाय को दोष देना शुरू कर देंगे, इसमें कहा गया कि "हम तो सामान्य थे, लेकिन पुराने वर्ग के कारण हमें मौका नहीं मिला।"

यह टिप्पणी न केवल कटाक्ष है, बल्कि एक गंभीर सामाजिक और राजनीतिक प्रश्न भी उठाती है—क्या केवल नारे और लड़कियों में जोश दिखाना ही देशभक्त है, या जब देश को बर्बाद हो, तब जान की बाज़ी पहनना भी उसी का हिस्सा है?

आरएसएस, बजरंग दल और करणी सेनाएं अक्सर अपने कठोर रुख और आक्रामक अभियानों के लिए जाती रहती हैं। वह लव जिहाद का समर्थक हो, गौ रक्षा का आंदोलन, या फिर पद्मावती जैसी फिल्मों का विरोध- इन छात्रों के समर्थक और कार्यकर्ता हमेशा के लिए राष्ट्रवादी बने हुए हैं। लेकिन जब बात वास्तविक देशसेवा या युद्ध जैसे राष्ट्रीय संकट की आती है, तो उनकी भूमिका को लेकर कई बार आलोचना भी होती रहती है।

इस पूरे मुद्दे को देखने का एक और सिद्धांत यह भी है कि यह उन लाखों युवाओं की भावनाओं को भी आवाज देता है जो सेना में भर्ती के लिए स्थायी तैयारी कर रहे हैं, लेकिन जातिगत भेदभाव या राजनीतिक हस्तक्षेप के पीछे कारण राह जा रहे हैं। ऐसे में जब कुछ संगठन केवल राजनीतिक संरक्षण के बल पर राष्ट्रभक्ति का जुड़ाव रखते हैं, तो हममें गुस्सा स्वाभाविक है।

हालाँकि यह टिप्पणी अनापेक्षित रूप में की गई है, लेकिन इसके पीछे का संदेश अत्यंत गहरा है- केवल नारियों को देशभक्ति और प्रदर्शन सीमित तक नहीं होना चाहिए। यदि कोई संगठन या व्यक्ति राष्ट्र की सेवा का दावा करता है, तो उसे ऋण वसूली पर सबसे आगे रहने की भी जांच करनी चाहिए।

यह बहस सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रही है और आने वाले समय में यह राजनीतिक गलियारों में भी गूंज सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इसमें किसी छात्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने आई है या नहीं।

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