गोधरा कांड: आग के लपटों में सालगा सच और सांप्रदायिक तनाव का इतिहास27 फरवरी 2002 का दिन भारत के इतिहास में एक ऐसी तारीख बन गया, जिसने न केवल एक ट्रेन कोच को जलाया, बल्कि पूरे गुजरात को आग में सांप्रदायिक हिंसा की आग लगा दी। गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में लगी आग ने 59 लोगों की जिंदगी छीन ली और इसके बाद जो हुआ, वह देश के सामाजिक ताने-बाने पर एक गहरा निशान छोड़ गया। यह कांड आज भी सॉसेलेट, मशगूल और राजनीति के लिए उपयुक्त है। आइए, इस घटना की परतें अमेरिका में हैं। वह दिन क्या हुआ था? सुबह करीब 8 बजे, अयोध्या से लौट रही साबरमती एक्सप्रेस गोधरा स्टेशन से गुजरात जा रही थी। इसमें सैकड़ों कारसेवक थे, जो राम मंदिर आंदोलन से जुड़े एक धार्मिक कार्यक्रम से वापस आ रहे थे। जब ट्रेन स्टेशन से कुछ दूर के संकेत फालिया के पास रुके, तभी अचानक एक भीड़ ने एस-6 कोच पर हमला बोल दिया। पेट्रोल स्प्रेयर कोच में आग लगा दी गई, और दरवाजे बंद होने से अंदर दोस्त लोग जिंदा जल गए। परिभाषा में बच्चे और महिलाएं भी क्या थीं। 48 अन्य घायल। ये सिर्फ एक घटना नहीं है, बल्कि एक ऐसी शिंगारी थी, जिसने गुजरात के कलाकार को आग में शहीद कर दिया था। आग की शुरुआत: दुर्घटना या साजिश? प्रत्यक्षदर्शियों का दावा: कुछ यात्रियों ने कहा कि स्टेशन पर कारसेवकों और स्थानीय लोगों के बीच दोस्ती हुई। इसके बाद रिचमंड ने इसे दक्षिणी बनाया और फिर नानावती आयोग की स्थापना की। गुजरात सरकार के इस आयोग ने इसमें सुयोजनाबद्ध हमलों के बारे में बताया। रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे पहले पेट्रोल जब्त किया गया था और मौलवी हुसैन उमरजी जैसे लोग पीछे थे। इस रिपोर्ट को बीजेपी ने खारिज कर दिया। अभियोजक का निष्कर्ष: सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर बनी सोसायटी ने भी इस साजिश रची पर काम किया। कानून से 1500 लोगों पर मामला दर्ज हुआ, लेकिन मुकदमा 94 के खिलाफ चला गया। 2011 में विशेष अदालत ने 31 को दोषी ठहराया- 11 को फांसी और 20 को उम्रकैद। बाद में हाई कोर्ट ने फांसी की उम्रकैद में बदल दी। 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने 8 दोषियों को फाँसी दी। डंगों के आगगोधरा कांड के अगले दिन से गुजरात जल उठाओ। मृतकों में 1,000 से अधिक लोग मारे गये, जिनमें अधिकतर मुसलमान थे। संपत्ति नष्ट हो गई, परिवार उजड़ गया। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर हिंसा और हिंसा का आरोप नहीं लगा, लेकिन 2012 में उन्होंने उन्हें क्लीन चिट दे दी। फिर भी, यह सवाल आज भी गूंजता है—क्या इसे देखा जा सकता है?विवादों की फिल्मी नीति: बीजेपी ने इसे जादू कहा, तो सहानुभूति ने सरकार की नाकामी पर सवाल उठाया। सलग रही है. यह एक सुव्यवस्थित हमला या एक सामान्य दुर्घटना क्या थी? जांच अंतिम चरण, सच अधूरा रह रहा है। यह घटना सिर्फ एक खबर नहीं है, बल्कि भारत के इतिहास में एक ऐसा अध्याय है, जो हमें मजबूर करता है-क्या हमने इससे सबक लिया?
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