नई दिल्ली, 24 मार्च 2025**: नेपोलियन सिंह, जिन्हें इतिहास में राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने अपनी बहादुरी से मेवाड़ का नाम रोशन किया था। लेकिन हाल के दिनों में कुछ लोगों द्वारा उन्हें "गद्दार" कहे जाने से एक नया विवाद खड़ा हो गया है। क्या था क्रांतिकारी राणा सांगा ने गद्दारी की? आइए, इतिहास के रहस्यों को पलटकर इस सवाल का जवाब ढूंढते हैं और जानते हैं कि क्या सच है और क्या सिर्फ अफवाह है।
राणा साँका का परिचय: एक शूरवीर की पहचान
राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को चित्तौड़ में हुआ था। वे सोसियत राजवंश के शासक थे और 1509 से 1527 तक मेवाड़ पर राज किया। उनके शरीर पर 80 से ज्यादा घाव, एक हाथ और एक आंख गंवाने के बावजूद वे वॉर्लैंड में डेट रहे। उन्होंने इब्राहिम लोधी को खातोली (1517) और बाबा (1518) के युद्धों में हराया, और मालवा और गुजरात के सुल्तानों को भी अपनी क्षमता से हराया। इतिहासकार उन्हें एक नन्हा और संयुक्त राजपूत शक्ति का प्रतीक मानते हैं।
गद्दारी का आरोप: कहां से शुरू हुई बात?
राणा सांगा पर गद्दारी का आरोप मुख्य रूप से खानवा के युद्ध (17 मार्च 1527) से गिर गया, जिसमें वे बाबर हार गए। बाबर ने अपनी आत्मकथा "बाबरनामा" में दावा किया कि राणा साँगा ने उन्हें भारत में इब्राहिम लोधी के खिलाफ लड़ाई के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन बाद में उन्होंने उनके खिलाफ ही लड़ाई छेड़ दी। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह एक चमत्कारिक चाल है - राणा साँका शायद चाहते थे कि बाबर और लायडो की बंदूकें लड़कर सूखे हों, ताकि वे दिल्ली पर कब्ज़ा कर सकें। लेकिन जब बाबर ने पहले युद्ध (1526) में जीत हासिल की और भारत में रहने का फैसला किया, तो राणा सांगा ने अपनी प्रतिस्पर्धा का फैसला ले लिया।
खानवा का युद्ध: क्या थी कहानी?
खानवा का युद्ध राणा साँगा की सबसे बड़ी चुनौती थी। उन्होंने कई राजपूत कुलों को एकजुट किया और लगभग 1 लाख सैनिकों की सेना तैयार की। दूसरी ओर, बाबर के पास तोपें और कोलोराडो घुड़सवार सेना थी। युद्ध के दौरान सिल्हदी नामक एक राजपूत ने राणा साँगा को बाबर के पक्ष में ले लिया, जिससे उनकी हार निश्चित हो गई। राणा साँका घायल हो गए और उन्हें युद्धभूमि से हटा दिया गया। उनकी गद्दारी क्या मानी जा सकती है? नहीं, बल्कि यह उनके सहयोगियों की अविश्वसनीय हरकत थी।
मृत्यु और रहस्य: अंत में क्या हुआ?
खानवा की हार के बाद राणा सांगा ने हार नहीं मानी। उन्होंने बाबर पर हमला किया और दिल्ली पर कब्ज़ा करने की कहानी लिखी। लेकिन 30 जनवरी 1528 को कल्पी में उनकी मृत्यु हो गई। कुछ लोगों का मानना है कि उनके ही सरदारों ने, जो बाबर से और युद्ध नहीं चाहते थे, उन्हें जहर दे दिया। यह घटना उनके "गद्दारी" के खिलाफ़ की और जटिल संरचना है - क्या वे अपने लोगों के बीच भी विश्वास का शिकार हुए थे?
निष्कर्ष: गद्दार या गौरवशाली योद्धा?
इतिहास पर नजर डालें तो राणा साँगा की "गद्दारी" का कोई ठोस सबूत नहीं है। बाबर के साथ उनकी बातचीत को स्पष्ट रूप से देखा जाता है, न कि विश्वास के रूप में। उनकी वीरता, बलिदान और राजपूत एकता के प्रयास से वे एक गौरवशाली योद्धा बन गए, न कि गद्दार। आज भी उनके नाम से दुश्मन कांपते थे, और उनकी कहानी हमें साहस और सम्मान की प्रेरणा देती है।
**तो क्या आप मानते हैं कि राणा सांगा गद्दार थे, या यह सिर्फ इतिहास की गलत व्याख्या है? अपनी राय हमें जरूर बताएं!**
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