न्यायालय का कजाकिस्तान का निर्णय
इलिनोइस हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे मामले में फैसला सुनाया है, जिसने देश भर में बहस छेड़ दी है। कोर्ट ने कहा कि 11 साल की नाबालिग लड़की के साथ निजी संबंधों को अंजाम देना, उसके पायजामे का नाडा तोड़ना और उसे जमीन के नीचे खींचने की कोशिश करना, अपवित्रता या बदनामी के प्रयास का मामला नहीं बनता। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र की बेंच वाली बेंच ने इसे अपराध की 'तैयारी' और 'वास्तविक प्रयास' के बीच शामिल किया और अदालत के गंभीर सहयोगियों को राष्ट्रीय बनाने का आदेश दिया। कोर्ट के इस फैसले में कानूनी और सामाजिक हलकों के खिलाफ दिए गए सवालों के जवाब दिए गए हैं कि यह नाबालिगों के यौन अपराध के लिए क्या काम करता है।
की पृष्ठभूमि और अदालत का तर्क
यह मामला 2021 का है, जब कासगंज में दो चार, पवन और आकाश पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने एक 11 साल के बच्चे को टक्कर देने के लिए उसके साथ मिलकर सामूहिक और दोस्तों की कोशिश की। कैफे कोर्ट में फिल्म के फाइनल की फाइल में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (दुष्कर्म) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत दोनों को शामिल किया गया था। हालाँकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि गवाहों की गवाही में यह साबित नहीं हुआ कि कागज़ात के दरवाजे या स्क्रैप ने 'पेनेट्रिवेटिव सेक्स' की कोशिश की थी। जस्टिस मिश्रा ने तर्क दिया कि क्रिप्टो के प्रयास का आरोप साबित हो सकता है, जब अपराध की तैयारी से आगे बढ़कर वास्तविक प्रयास में बदलाव आएगा।
सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा से मेरीवी
उच्च न्यायालय का यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय का एक पुराना निर्णय उलटा होता है। 19 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए साफ कर दिया था कि किसी बच्चे के निजी इस्तेमाल को 'यूं इरादे' से शॉउन पॉक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत 'यूं अटैक' माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इसमें सबसे ज्यादा
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