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छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब से पाँच बार माफी माँगी थी। भाजपा का झूठ

नई दिल्ली के एक टीवी स्टूडियो में गरमा-गरम बहस चल रही थी। न्यूज चैनल पर इतिहास को लेकर एक बड़ी बहस हो रही थी, और केंद्र में थे भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी। हमेशा की तरह, वे आत्मविश्वास से भरे थे और हर तर्क को अपनी शैली में प्रस्तुत कर रहे थे।

तभी उन्होंने एक ऐसा बयान दिया, जिसने पूरे देश में बवाल खड़ा कर दिया—

"छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब से पाँच बार माफी माँगी थी।"

चैनल के डिबेट हॉल में कुछ क्षणों के लिए सन्नाटा छा गया। फिर विपक्षी पैनलिस्ट चिल्लाने लगे, सोशल मीडिया पर बवाल मच गया, और इतिहासकारों ने इसे "तथ्यात्मक रूप से गलत" करार दिया। महाराष्ट्र में लोग सड़कों पर उतर आए, और पूरे देश में विरोध होने लगा।

लेकिन असली डरावनी घटना उस रात होने वाली थी।

रात का रहस्य

सुधांशु त्रिवेदी अपने आलीशान घर में आराम कर रहे थे। न्यूज चैनलों पर उनका बयान ट्रेंड कर रहा था, लेकिन वे निश्चिंत थे। उनके अनुसार, इतिहास का मतलब वही होता था, जो सत्ता तय करती थी।

रात के करीब 2 बजे अचानक कमरे की बत्तियाँ झपकने लगीं। घड़ी की सुइयाँ अजीब तरह से घूमने लगीं। फिर ठंडी हवा का एक झोंका कमरे में आया, और मेज पर रखी "शिवाजी चरित्र" नाम की किताब अपने आप खुल गई। पन्ने खुद-ब-खुद पलटने लगे और उनमें से एक वाक्य चमकने लगा—

"स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा!"

सुधांशु त्रिवेदी चौंक गए। उन्होंने किताब बंद करने की कोशिश की, लेकिन तभी कमरे में तलवारों की खड़खड़ाहट गूंजने लगी। दीवार पर एक छवि उभरने लगी—

छत्रपति शिवाजी महाराज की छवि!

उनकी आँखों में गहरी चमक थी, और हाथ में तलवार। उन्होंने गहरी, गरजती आवाज़ में कहा—

"झूठ मत फैलाओ! इतिहास को तोड़-मरोड़ कर बोलने का परिणाम जानते हो?"

सुधांशु त्रिवेदी का शरीर काँपने लगा। वे उठकर भागने लगे, लेकिन उनके पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए। तभी कमरे में चारों तरफ़ मराठा सैनिकों की छायाएँ उभरने लगीं। उनके हाथों में तलवारें थीं, और उनकी आँखों में गुस्सा।

एक सैनिक गरजा— "शिवाजी महाराज ने कभी किसी के सामने सिर नहीं झुकाया! यह असत्य है!"

सुधांशु का पश्चाताप

सुधांशु त्रिवेदी घबराकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे, "मुझे माफ़ कर दो! मैं झूठ नहीं बोलूँगा!"

और तभी सब कुछ शांत हो गया। वे घबराकर ज़मीन पर गिर पड़े, उनका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था।

सुबह होते ही उन्होंने तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और कहा—

"मेरे बयान से अगर किसी की भावनाएँ आहत हुई हैं, तो मैं खेद प्रकट करता हूँ।"

लेकिन जनता जानती थी— यह खेद आत्मा की गहराई से नहीं, बल्कि डर से उपजा था। क्योंकि इतिहास केवल किताबों में नहीं, बल्कि लोगों की आत्माओं में भी जीवित रहता है…

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