उत्तर प्रदेश: इटावा में यादव कथावाचक की चोटी काटी, क्रूर अपमान और मारपीट का वीडियो वायरल - क्या कथावाचन ब्राह्मणों का एकाधिकार? बीजेपी राज में दलित-ओबीसी-एससी की सुरक्षा पर गंभीर सवाल! छेड़खानी के आरोप से मामला और उलझा।
इटावा, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के इटावा जिले से एक दिल दहला देने वाला और अत्यंत निंदनीय मामला सामने आया है, जिसने पूरे प्रदेश में आक्रोश और चिंता की लहर पैदा कर दी है। बकेवर थाना क्षेत्र के दादरपुर गांव में भागवत कथा कहने आए यादव समाज के भागवताचार्य व्यास मुकुट मणि को कथित तौर पर ब्राह्मण समुदाय के लोगों द्वारा क्रूरता से अपमानित किया गया, पीटा गया और उनकी चोटी काटकर उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया। यह घटना 22 जून की है, लेकिन इसका वीडियो अब तेजी से फैल रहा है, जिससे सामाजिक सद्भाव और कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
क्रूरता की पराकाष्ठा: चोटी काटना, पेशाब से शुद्धिकरण और बंधक बनाना
भागवताचार्य व्यास मुकुट मणि ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि उन्हें इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वे ब्राह्मण समुदाय से नहीं थे। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी चोटी काट दी गई, जिसके बाद उन्हें अपमानित करने की सारी हदें पार करते हुए कथित तौर पर एक महिला के पेशाब से उनकी चोटी का "शुद्धिकरण" किया गया। उन्हें लगातार जातिसूचक गालियाँ दी गईं और लगभग पांच घंटे तक बंधक बनाकर रखा गया। वायरल वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे कुछ लोग कथावाचक मुकुट मणि और उनके साथी के साथ मारपीट कर रहे हैं, उन्हें अपशब्द कह रहे हैं और जातिसूचक शब्दों से अपमानित कर रहे हैं। वीडियो में यह भी दिखाई देता है कि क्षेत्रवासी कथावाचक पर एक महिला के पैर छूने का दबाव बना रहे हैं, जो इस घटना की क्रूरता और अपमानजनक प्रकृति को और भी उजागर करता है।
कथावाचक मुकुट मणि ने स्पष्ट रूप से कहा कि उनके साथ यह मारपीट और अपमान केवल इसलिए किया गया क्योंकि वे यादव समाज से आते हैं। यह बयान सीधे तौर पर जातिगत भेदभाव और एक विशेष समुदाय के वर्चस्व की मानसिकता को दर्शाता है।
मामले में नया मोड़: महिला द्वारा छेड़खानी का आरोप
हालांकि, इस पूरे मामले में एक नया और विवादास्पद मोड़ तब आ गया जब दूसरे पक्ष ने कथावाचक पर एक महिला के साथ छेड़खानी का आरोप लगाया। चौंकाने वाली बात यह है कि कथित तौर पर पीड़ित महिला स्वयं मीडिया के सामने हंस-हंसकर छेड़खानी की बात बता रही थी। यह विरोधाभासी स्थिति पूरे प्रकरण को और भी जटिल बना देती है और सवाल उठाती है कि क्या छेड़खानी का आरोप एक वास्तविक शिकायत है या फिर कथावाचक को अपमानित करने और पीटने की घटना को सही ठहराने का एक प्रयास है। यह पहलू मामले की तह तक जाने और हर आरोप की निष्पक्ष जांच की आवश्यकता को और बढ़ा देता है।
पुलिस कार्रवाई और न्याय की मांग
इस जघन्य घटना के सामने आने के बाद, पीड़ित भागवताचार्य जान बचाकर अपने सहयोगियों और स्थानीय सांसद के साथ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) ब्रजेश कुमार से मिले और दोषियों के खिलाफ तहरीर दी। पुलिस ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। अब पुलिस को दोनों पक्षों के दावों की गहन और निष्पक्ष जांच करनी होगी। यह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इस घटना की गंभीरता को देखते हुए यह आवश्यक है कि सभी दोषी व्यक्तियों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
ब्राह्मण आतंक बनाम जातिगत विशेषाधिकार: एक गंभीर बहस
यह घटना केवल मारपीट या अपमान का मामला नहीं है, बल्कि यह भारत में जाति व्यवस्था की गहरी जड़ों और एक विशेष वर्ग द्वारा अपने कथित "विशेषाधिकारों" को थोपने की मानसिकता को भी उजागर करती है। क्या कथा कहने के लिए किसी विशेष जाति का होना अनिवार्य है? क्या धार्मिक अनुष्ठानों और प्रवचनों पर केवल एक समुदाय का एकाधिकार है? ये ऐसे प्रश्न हैं जो इस घटना के बाद जोर-शोर से उठ रहे हैं।
यह घटना तथाकथित "ब्राह्मण आतंक" या "स्वर्ण आतंक" की अवधारणा को भी बल देती है, जहां उच्च जाति के लोग अपनी प्रभुत्वता बनाए रखने के लिए निम्न या अन्य पिछड़ी जातियों के लोगों को निशाना बनाते हैं। यह सिर्फ इटावा की घटना नहीं है, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसी खबरें अक्सर आती रहती हैं, जहां दलित, ओबीसी और आदिवासी समुदायों को उनके जातिगत पहचान के कारण भेदभाव, हिंसा और अपमान का सामना करना पड़ता है।
बीजेपी राज में दलित, ओबीसी, एससी की सुरक्षा: एक कड़वी सच्चाई?
यह घटना ऐसे समय में सामने आई है जब उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार है, जो "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" के नारे के साथ सत्ता में आई है। हालांकि, इटावा जैसी घटनाएं इस नारे की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। क्या बीजेपी सरकार में दलित, ओबीसी और एससी समुदाय के लोग वास्तव में सुरक्षित हैं? क्या उन्हें अपने धार्मिक और सामाजिक कार्यों को बिना किसी भय या उत्पीड़न के करने की स्वतंत्रता है?
यह घटना दर्शाती है कि कानून का राज और सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित करना केवल नारों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे जमीन पर लागू किया जाना चाहिए। सरकार और प्रशासन की यह जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि कोई भी व्यक्ति या समूह अपनी जाति या समुदाय के आधार पर किसी अन्य व्यक्ति को परेशान या अपमानित न कर सके। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानून प्रवर्तन, सामाजिक जागरूकता अभियान और शिक्षा की आवश्यकता है जो जातिगत भेदभाव की जड़ों को खत्म कर सके।
आगे की राह: समाज का आत्म-चिंतन और सरकार की जवाबदेही
यह घटना समाज के लिए एक आत्म-चिंतन का विषय है। हमें यह विचार करना होगा कि हम एक ऐसे समाज का निर्माण कैसे करें जहां सभी व्यक्ति, उनकी जाति, धर्म या लिंग के बावजूद, सम्मान और समानता के साथ जीवन जी सकें। धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं का उपयोग किसी समुदाय को नीचा दिखाने या उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
सरकार को इस घटना को गंभीरता से लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न केवल दोषियों को दंडित किया जाए, बल्कि ऐसे तंत्र भी विकसित किए जाएं जो भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोक सकें। इसमें पुलिस की संवेदनशीलता, त्वरित कार्रवाई, और जातिगत भेदभाव के खिलाफ कड़े कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन शामिल है। विशेष रूप से, छेड़खानी के आरोप की सच्चाई का पता लगाना और यदि यह आरोप झूठा पाया जाता है तो ऐसे आरोप लगाने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई करना महत्वपूर्ण है, ताकि कोई भी आपराधिक घटना को छिपाने के लिए झूठे आरोपों का सहारा न ले सके। यह भी महत्वपूर्ण है कि धार्मिक नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों को आगे आकर जातिगत भेदभाव की निंदा करनी चाहिए और सभी समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए।
इटावा की यह घटना हमें याद दिलाती है कि भारत में जाति व्यवस्था अभी भी एक कड़वी सच्चाई है और इससे निपटना एक लंबी और कठिन लड़ाई है। हमें एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए सामूहिक रूप से काम करना होगा जहां हर व्यक्ति को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार हो, और जहां धर्म या जाति के नाम पर किसी को भी अपमानित या प्रताड़ित न किया जाए। यह समय है जब हम सब मिलकर इस ब्राह्मणवादी, जातिवादी मानसिकता का डटकर मुकाबला करें और एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज की स्थापना करें।
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