
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख मायावती कभी दलितों की मसीहा मानी जाती थीं। लेकिन क्या उनकी राजनीति ने वाकई दलित-मुस्लिम समाज को फायदा पहुंचाया, या फिर वह सिर्फ सत्ता की सौदागर बनकर रह गईं?
गुजरात दंगे और मोदी का बचाव (2002)
2002 के गुजरात दंगों के बाद जब पूरा देश नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठा रहा था, तब मायावती ने मोदी के साथ मंच साझा किया और साफ कहा—"मोदी का दंगों से कोई लेना-देना नहीं है।" एक दलित नेता होकर उन्होंने मुस्लिम समाज के घावों पर मरहम लगाने के बजाय, दंगों को नकारने की राजनीति की।
ब्राह्मणवाद का सहारा और 'गणेश' का नारा (2007)
2007 में मायावती ने ब्राह्मणों के वोट बैंक को साधा और "हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है" का नारा दिया। यह नारा सीधे तौर पर ब्राह्मणवादी सोच को खुश करने के लिए गढ़ा गया, जिससे उनका मूल दलित वोट बैंक हाशिए पर चला गया। मुसलमानों के लिए कोई खास एजेंडा नहीं था, बस सत्ता की राजनीति थी।
बीजेपी के साथ बार-बार गठबंधन (1995, 1997, 2002, 2007)
BSP ने 1995, 1997, 2002 और 2007 में चार बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) से गठबंधन किया। हर बार मायावती मुख्यमंत्री बनीं और हर बार बीजेपी मजबूत होती गई। मुसलमानों और दलितों के लिए लड़ने का दावा करने वाली BSP ने उन्हीं के खिलाफ खड़ी पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया।
वनाधिकार कानून और ज़मीन से वंचित दलित-आदिवासी (2008)
2008 में जब वनाधिकार कानून के तहत दलित-आदिवासियों को जमीन मिलने का रास्ता साफ हो सकता था, तब मायावती सरकार ने इसे लागू नहीं किया। जबकि यही ज़मीनें दलितों और आदिवासियों के लिए बड़ी आर्थिक ताकत बन सकती थीं।
टिकट बेचने और धनकुबेरों की राजनीति
BSP पर अक्सर टिकट बेचने के आरोप लगे हैं। मायावती ने खुद को "दलित की बेटी" कहा, लेकिन पार्टी के टिकट स्वर्ण जातियों के धनपशुओं को बेचे गए। मुसलमानों को भी टिकट दिए, लेकिन उनकी स्थिति कमजोर बनी रही।
BSP: कांशीराम की पार्टी से मायावती की जागीर?
कांशीराम ने BSP को दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों की ताकत बनाने के लिए खड़ा किया था। लेकिन मायावती ने इसे अपने व्यक्तिगत हितों के लिए इस्तेमाल किया। नतीजा यह हुआ कि आज BSP का संगठन कमजोर है, मुस्लिम वोट बैंक सपा-कांग्रेस की ओर खिसक गया और दलित वोट भी बंट गया।
क्या मायावती ने दलितों और मुसलमानों के साथ विश्वासघात किया? क्या उनकी राजनीति ने बीजेपी को मजबूत किया? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।
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